HSBC ने किया अलर्ट ये 10 बड़े खतरे शेयर बाजार को देंगे झटका

By themoneymantra@admin
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पिछले कुछ वर्षों में भारतीय शेयर बाजार में जोरदार तेजी देखने को मिली है। कोरोना महामारी के बाद से घरेलू निवेशकों ने इस बाजार में करीब 100 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इस निवेश के परिणामस्वरूप सेंसेक्स, निफ्टी, मिडकैप और स्मॉलकैप जैसे सभी प्रमुख सूचकांक रिकॉर्ड ऊंचाइयों पर कारोबार कर रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह तेजी आगे भी जारी रहेगी?

ब्रोकरेज फर्म HSBC ने हाल ही में इस विषय पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें शेयर बाजार पर मंडरा रहे 10 प्रमुख जोखिमों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। ये जोखिम तत्काल नहीं हैं, लेकिन समय के साथ ये बाजार की मौजूदा तेजी को प्रभावित कर सकते हैं। आइए इन संभावित जोखिमों पर विस्तार से चर्चा करें:

1. बैंकिंग प्रणाली पर तनाव

हाल के वर्षों में भारतीय बैंकों ने अपनी बैलेंस शीट को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की है, जिससे ग्रॉस एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) का स्तर 2017 के 11% से घटकर अब 2.8% तक आ गया है। हालांकि, हाल के महीनों में बैंकों द्वारा असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण (पर्सनल लोन) में वृद्धि के कारण एसेट क्वालिटी को लेकर चिंता जताई जा रही है। अगर इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह बैंकिंग सेक्टर के मुनाफे पर बुरा प्रभाव डाल सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से का समर्थन करता है।

2. जमा राशि में बढ़ोतरी की चुनौती

बैंकों के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है जमा राशि (डिपॉजिट) में बढ़ोतरी की कमी। हालाँकि घरेलू निवेशक शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश भारतीय परिवारों की संपत्ति अभी भी सोना, प्रॉपर्टी और बैंक जमा में केंद्रित है। HSBC की रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों के ऋण (लोन) तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन जमा राशि उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है, जिससे ब्याज दरों पर दबाव पड़ सकता है। अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो इसका प्रभाव बैंकिंग सेक्टर की कमाई पर पड़ सकता है।

3. निजी क्षेत्र का कैपिटल एक्सपेंडिचर में कमी

HSBC की रिपोर्ट बताती है कि निजी क्षेत्र के कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत व्यय) में गिरावट देखी जा रही है, विशेष रूप से मशीनरी और उपकरणों पर निवेश कम हो रहा है। इसका असर कंपनियों की आय पर पड़ सकता है। हालाँकि, कुछ सूचीबद्ध कंपनियों (लिस्टेड कंपनियों) ने इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया है और 2023 में उनका पूंजीगत व्यय 15% तक बढ़ा।

4. कमजोर और केंद्रित विदेशी निवेश

भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश (FDI) की हिस्सेदारी में भी गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में विदेशी निवेश लगभग आधा हो गया और जो निवेश आया वह भी सिर्फ कुछ ही राज्यों तक सीमित रहा, जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात। अगर इन राज्यों में किसी कारण से निवेश में कमी आती है, तो इसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

5. उपभोक्ता असमानता

शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं का खर्च तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विपरीत असर देखा जा रहा है। ग्रामीण भारत में लोगों को महंगाई और कमजोर मानसून के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह असमानता बाजार की समग्र मांग को प्रभावित कर सकती है, जिससे बाजार की तेजी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

6. आय से जुड़ा जोखिम

शेयर बाजार की मौजूदा तेजी कंपनियों की मजबूत आय पर निर्भर करती है। हालांकि, हाल के तिमाही नतीजे उम्मीद के अनुसार नहीं रहे हैं। यदि भविष्य में आय की वृद्धि धीमी रहती है, तो बाजार की यह तेजी ठहर सकती है।

7. कॉरपोरेट गवर्नेंस के खतरे

हाल के वर्षों में कुछ प्रमुख कॉर्पोरेट्स के गवर्नेंस और संरचना को लेकर सवाल उठे हैं। अगर इन आरोपों में सच्चाई पाई जाती है, तो यह पूरी शेयर बाजार की छवि को खराब कर सकता है और निवेशकों के विश्वास को हिला सकता है।

8. नियामकीय जोखिम

HSBC का मानना है कि नियामकीय अनिश्चितताएं (रेग्युलेटरी रिस्क) भी बाजार की तेजी के लिए खतरा हो सकती हैं। जैसे, हाल ही में कैपिटल गेंस टैक्स में बदलाव किया गया, जिससे निवेशकों के रिटर्न और उनके विश्वास पर असर पड़ सकता है।

9. बाजार संरचना का जोखिम

भारत का एशियाई और इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में वेटेज लगभग 23% है और यह बढ़ सकता है। लेकिन अगर वैश्विक निवेशकों की दिलचस्पी अन्य देशों में बढ़ती है, तो वे भारतीय शेयरों को बेच सकते हैं, जिससे बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

10. बाहरी जोखिम

भारत कच्चे तेल और सोने का सबसे बड़ा आयातक है। अगर इन वस्तुओं की कीमतों में अचानक वृद्धि होती है, तो इससे उपभोक्ता मांग घट सकती है और महंगाई पर दबाव बढ़ सकता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

इन 10 प्रमुख जोखिमों के बावजूद HSBC का भारतीय बाजार को लेकर दृष्टिकोण अभी भी सकारात्मक है। उनका मानना है कि लंबी अवधि में भारत की विकास गाथा मजबूत बनी हुई है। हालांकि निवेशकों को इन संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अपनी निवेश रणनीति को परखना चाहिए और विवेकपूर्ण निर्णय लेने चाहिए।

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